लाल क़िले की घटना के बाद चर्चा में दीप सिद्धू कौन हैं
26 जनवरी को प्रदर्शनकारियों का एक वर्ग किसान ट्रैक्टर परेड के निर्धारित मार्ग से अलग हो गया और लाल क़िले पर पहुँच गया.
वहाँ उन्होंने लाल क़िले पर निशान साहिब (सिखों का परंपरागत केसरिया झंडा) और किसानों के हरे-पीले झंडों को फ़हराया.
जब यह घटना हुई, तब दीप सिद्धू वहाँ मौजूद थे और वीडियो बना रहे थे. इसके बाद से ही दीप सिद्धू चर्चा में हैं.
आइए, किसान आंदोलन में दीप सिद्धू की भागीदारी, राजनेताओं और फ़िल्म जगत के लोगों के साथ उनके संबंधों पर एक नज़र डालें.
दीप सिद्धू सितंबर 2020 में किसान आंदोलन में शामिल हुए और जल्द ही सोशल मीडिया पर काफ़ी ध्यान आकर्षित करने में कामयाब रहे.
दीप का अंग्रेज़ी में पुलिस अधिकारियों के साथ बहस करने का एक वीडियो भी वायरल हुआ था, जिसमें उन्हें यह कहते सुना जा सकता है कि “यह एक क्रांति है. अगर वो मुद्दे की गंभीरता को नहीं समझते हैं, तो यह क्रांति इस देश और दक्षिण एशिया की भू-राजनीति को परिभाषित करेगी.”
इस वीडियो के बाद दीप सिद्धू ने राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियाँ बटोरीं.
जब किसान संगठनों ने दीप सिद्धू से ख़ुद को दूर कर लिया, तो सोशल मीडिया पर इस बारे में ख़ूब बहस हुई.
सामाजिक कार्यकर्ता और पेशेवर वकील सिरमजीत कौर गिल ने किसान संगठनों के रुख़ का समर्थन किया और उन मुद्दों पर प्रकाश डाला, जिनसे उन्होंने ऐसा करने का निर्णय लिया था.
किसान आंदोलन में दीप सिद्धू और नेताओं का रुख़
जब किसान आंदोलन शुरू हुआ, तो दीप सिद्धू सहित सभी यह कह रहे थे कि वो किसानों के लिए और किसान नेताओं के नेतृत्व में (यूनियनों के बैनर तले) इस आंदोलन में शामिल हैं.
लेकिन कुछ समय बाद, दीप सिद्धू ने किसान नेताओं के फ़ैसलों पर सवाल उठाना शुरू कर दिया और सिंघु बॉर्डर पर अपना ख़ुद का मंच बना लिया.
हालांकि, उनके अधिकांश भाषण तीन कृषि क़ानूनों की जगह भारत के संविधान में ग़ैर-संघीय ढाँचे पर केंद्रित थे.
कृषि क़ानूनों के बारे में बात नहीं करने के लिए किसान संगठनों ने उन्हें सिंघु बॉर्डर के मुख्य मंच से बोलने से रोक दिया.
इन किसान यूनियनों में उगराहां ग्रुप ने स्पष्ट रूप से कहा कि वे किसान आंदोलन की दिशा बदल रहे हैं.
दीप सिद्धू अपने सोशल मीडिया पर जरनैल सिंह भिंडरावाले के बारे में पोस्ट करते रहते हैं, जिसकी वजह से किसान संगठनों ने उनसे ख़ुद को दूर कर लिया है.
जब किसान संगठनों ने दिल्ली की सीमाओं की ओर बढ़ने का आह्वान किया, तो दीप सिद्धू ने लोगों से वापस जाने को कहा क्योंकि उनके मुताबिक़ किसान संगठन अपने हितों के लिए उनका इस्तेमाल कर रहे थे.
26 जनवरी को ट्रैक्टर मार्च की घोषणा के बाद, दीप सिद्धू फिर से सक्रिय हो गए और उन्होंने इस मार्च के लिए लोगों को जुटाना शुरू कर दिया. हालाँकि, वे आउटर रिंग रोड पर मार्च के लिए जुट रहे थे.
इस बीच, किसान मज़दूर संघर्ष समिति, एक अन्य वामपंथी भारतीय किसान यूनियन (क्रांतिकारी) ने दिल्ली के बाहरी रिंग रोड पर योजना के अनुसार मार्च करने की बात कही.
इन बयानों ने दीप सिद्धू को संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा पुलिस के साथ सहमति से तय किए गए मार्ग से दूसरे मार्ग पर जाने का मौक़ा दिया.
सोमवार को, दीप सिद्धू और लक्खा सिधाना ने सिंघु बॉर्डर के मुख्य मंच से कहा कि वो दिल्ली के अंदर जाएँगे और पुलिस और संगठनों की ओर से तय मार्ग के अलावा मार्च करेंगे.
इसके बाद मंगलवार को प्रदर्शनकारी किसानों का एक दल लाल क़िले पर पहुँचा और दीप सिद्धू को वहाँ देखा गया.
दीप सिद्धू ठीक उस जगह मौजूद थे, जहाँ लोगों ने लाल क़िले पर झंडे लहराए और उन्होंने उसी जगह अपना एक वीडियो भी बनाया.